अगले दिन सुबह नीना सो रही जब उसकी doorbell बजी..
आधी नींद में उठकर, अपने बाल ठीक करती हुई, उसने दरवाज़ा खोला और बाहर गई मैं गेट की तरफ़। गेट खोल तो देखा देखा कि सामने एक आदमी अपने हाथ में एक parcel लिए खड़ा है।
नीना (आधी नींद में): “हाँ जी कहिए?”
वो आदमी parcel नीना को थमाते हुए बोला, “Mr चौधरी ने आपके लिए कुछ भेजा है।”
नीना ने वो parcel लिया, गेट बंद करके अंदर आ गयी. Parcel के डब्बे को टेबल रखते हुए वो सोच रही थी कि आखिर इस आदमी को इतनी जल्दी क्यों मची हुई है? और ऐसे कौन से ख़ास colour pigment है जो वो इन्ही रंगो से अपनी पत्नी का portrait बनवाना चाहता है? बड़े अजीब और अतरंगी होते हैं ये अमीर लोग!
ऐसा सोचते हुए वो किचन में गई अपने लिए coffee बनाने के लिए। Electric केतली में पानी चढ़ाया, और coffee के bag को निकला, पर दिमाग उसका, उस parcel पर ही अटका था। 2 चम्मच coffee डालते-डालते उससे रुका न गया।
भई, जब उत्सुकता और कौतुहल नीना के मन में कबड्डी खेल रहें हों, तो जवाब ढूंढना तो बनता ही है न! वो kitchen से निकली, हाथ में चाकू लिए और पहुंची table के पास parcel को खोलने। Parcel के ऊपर लगा हुआ टेप हटाया, wrapping पेपर को खोला तो देखा कि अंदर, एक सुंदर सा प्राचीन नक्काशी किया हुआ wooden box है।
नीना : “wow.. so beautiful..”
उसके मुंह से अनायास ही निकल गया। वो wooden box देखने में इतना आकर्षक था कि देखने वाले की आंखे ही टिक जाए। और हो भी क्यूँ ना! आखिर सत्यजीत ख़ानदानी था। एक अच्छी ख़ासी विरासत का मालिक और उससे भी ज़रूरी बात - सत्यजीत कला का सच्चा प्रशंसक है, उस बात पे कोई doubt नहीं रहा। और हाँ, वैसे भी उसके पास ऐसी कई antique चीज़े होंगीं…. होना, लाज़मी है।
उसने बॉक्स का कुंडा खोला और देखा तो उसमें से एक लेटर निकला और कोलकाता की flight ticket। वो उन्हें खोलने ही वाली थी कि उसके मोबाइल की स्क्रीन पर notification आया। ये मेसेज़ था उसके बचपन के दोस्त सतीश का..
Message- “Good morning लड़की .. कैसा रहा कल का exhibition? रात को तुझे कितने कॉल किए, उठाए क्यूँ नहीं?”
नीना ने देखा सतीश के कई missed calls थे। दरअसल, हुआ यूँ कि exhibition से लौट कर, थक कर सो गयी थी। और उसकी beauty sleep अभी अभी खत्म हुई जब ये पिटारा उसके सामने आया। उसने लेटर छोड़ कर सतीश को reply किया
Message - “morning buddy.. अरे कल के exhibition के बारे में तो पुछ ही मत पेंटिंग भी sold out हो गयी और मुझे नया काम भी मिल गया..”
और message भेज कर दोबारा बॉक्स और ticket देखने लगी।
“अरे! ये तो कल के ही tickets हैं... आखिर इसे इतनी जल्दी क्यूँ है?” वो बुदबुदाई।
नीना ने अब लेटर खोला और पढ़ना शुरू किया
(सत्यजीत कि आवाज़ में)
Dear Neena..
जानता हूँ की आप हैरान होंगे कि मैं आपको इतनी जल्दी कोलकाता क्यों बुला रहा हूँ।
मैं चाहता हूँ कि आप जल्द से जल्द मेरी पत्नी के portrait पर काम शुरू कर दें। आप समझ ही सकतीं हैं यह मेरे लिए बहुत ही emotional matter है। आप एक कलाकार हैं और एक कलाकार की sensitivity ही इस बात को समझ सकती है।
मुझे कुछ urgent काम की वजह से आज ही कोलकाता जाना पड़ रहा है, तो अफ़सोस, मैं आपके साथ travel नहीं कर पाऊँगा। ये सफर आपको अकेले ही करना होगा। किसी भी चीज़ के लिए मेरे मैनेजर को आप कभी भी contact कर सकतीं हैं।
कोलकाता में मिलते हैं।
सत्यजीत
Narrator: वो लेटर पढ़ ही रही थी कि फिर से उसकी door bell बजी। इस वक़्त कौन होगा सोचते उसने time देखा। और उठ कर दरवाजा खोला तो सामने सतीश था।
नीना : “तु? इस वक़्त?”
नीना उसे देख कर खुश हो गयी और उसे खींच कर अंदर ला कर बक्से के सामने बैठा दिया।
सतीश :“तू मुझे ये कब बताने वाली थी कि तुझे नया offer मिला है
सतीश नीना के साथ हुए अपने conversation का जिक्र करते बोला। उसकी नज़र टेबल पर पड़े हुए flight ticket और लेटर पर गयी। उसने ticket उठा कर देखे और लेटर पढ़ते हुए बोला
सतीश: “अब ये क्या बवाल है? कौन है ये सत्यजीत? क्या कोई बंगाली boyfriend बना लिया है क्या? और कोलकाता आखिर क्यों जाना है?”
नीना : “टिकट भेजा है। Private art collection दिखायेगा अपना। अपनी wife की photos भी दिखायेगा, इसलिए कोलकाता जा रही हूँ। तेरे लिए “रॉशोगोल्ला” ले आउंगी।
सतीश: हाँ, तो उसको बोल न, कि अपने बीवी की तस्वीर भेज दे… और तू यहीं से painting बनाकर भेज देना।
नीना: अरे वो उसकी एक शर्त है की painting के लिए मुझे उसके दिये हुए special colour pigment से ही painting बनानी होगी..”
नीना अपनी आंखे बड़ी करते उसे बताने लगी।
सतीश उसे आगाह करते बोला
सतीश: उफ़! अमीरों के चोंचले! देख! मैं बता रहा हूँ, ये रईसज़ादा total pyscho है… इससे बचके रह। तू बोल दे की तू नहीं कर सकती। Painting चाहिए तो दिल्ली में करवा लो वर्ना tata bye bye कर दे।
नीना उसके पास उसकी बाजू पकड़ के बैठ गयी
नीना: “देख मुझे अपने art को पहचान दिलाने की बहुत जरूरत है जो इस रईसज़ादे के project से हो सकता है। और कोलकाता ही तो जा रही हूँ… कौनसा टिम्बकटू के लिए निकल रही हूँ! और मैं तुझे बताती रहूँगी वहाँ क्या चल रहा है। Psycho ने जान लेने की कोशिश कि तो तू आ जाना, मुझे बचाने।”
कहते उसे हंसी आ गयी।
सतीश ने tensed होते कहा
सतीश: “तू मानेगी नहीं ना?”
नीना: “तुझे क्या लगता है? उसकी बीवी के portrait से बहुत पहचान मिलेगी, बड़े लोग है। कर देती हूँ..”
नीना हौले से बोली। उसकी आवाज़ में धीमापन था। मानो कह रही हो एक artist के तौर पर खुद को साबित करना सच में कितना मुश्किल है। सच ही तो है आज के दौर में खुद की पहचान बनाना कहाँ आसान है..
सतीश: “ठीक है कल तुझे में एयरपोर्ट ड्रॉप दूंगा.. दिखा ज़रा, नवाब साहब ने कौन सी class की टिकिट करवाई है। बातें तो बड़ी बड़ी करके गया है..”
कहते सतीश ने ticket देखने चाहे और नीना ने उसके हाथ से छीन लिए। यही छीना-झपटी थोड़ी देर चलती रही।और दोनों थोड़ी देर के लिए 7 साल के बच्चों की तरह behave करने लगे…. उन दोनों कि हँसी से नीना का घर भर गया।
ये मस्ती तो होनी ही थी। सतीश ठहरा उसके बचपन का दोस्त, वो उसे बखूबी जानता था, नीना के लिए फ़िक्र करना उसे अच्छा लगता था। सतीश ने कहने को तो कह दिया कि ठीक है लेकिन सच में सब ठीक है या नहीं इस बात का उसे पता लगाना था।
अपने ऑफिस जा कर वो सत्यजीत चौधरी के बारे में खबर निकालने में जुट गया। सत्यजीत चौधरी की हवेली, उसकी पत्नी, उसके पुरखों की ज़मीन्दारी, सबकी खबर इकट्ठा करने लगा।
सत्यजीत चौधरी कोलकाता का एक जाना पहचाना नाम था। सतीश इस बात को समझ चुका था कि सत्यजीत चौधरी, नीना को कोई ऐसा नुकसान नहीं पहुंचाएंगे जिससे उसकी image खराब हो।
देखते देखते दिन गुजर गया, अगली सुबह नीना जल्दी से तैयार हो गयी और सतीश उसे एयरपोर्ट ड्रॉप करने गया।
सतीश: “चल बाय, जल्दी से अपना काम खत्म करके वापस आ जा”
नीना: Byeeeee … तेरे रईसज़ादे को तेरा सलाम दूँगी….”
हँसते-हंसाते नीना निकल पड़ी अपने नए सफ़र पर। ये सफर नीना के लिए क्या क्या लाने वाला था ये तो वक़्त ही बताएगा। लेकिन वो इस बात से खुश थी कि उसे अच्छे काम के ऑफर आने लगेंगे उसके art को और पहचान मिलेगी और ऊपर वाला उसके लिए आगे के सभी रास्ते खोल देगा। उसे अंदर से खुशी महसूस हो रही थी। आने वाले समय में सब अच्छा होने की चाह लिए वो flight में जा कर अपनी सीट पर बैठ गयी।
कुछ ही वक़्त में नीना कोलकाता पहुँच गई। कोलकाता Airport से बाहर निकलते ही नीना ने अपने नाम का signboard देखा।
नीना: Hmmm…. ! काफ़ी इज़्ज़त!
नीना सोचती हुई ड्राइवर के पीछे चल पड़ी, जो की एक silver Mercedes का दरवाज़ा खोले, नीना को न्योता दिया! नीना बहुत खुश हो रही थी कि इतनी ख़ातिरदारी और इज़्ज़त तो आजतक उसे किसी ने नहीं दी! कार में बैठते ही उसने सतीश को कॉल किया और उसके फोन लेते ही तुरंत बोली
नीना: तू यूँही मुझे डरा रहा था! Right now, I am being treated like a queen!
सतीश: चिंता मत कर… काम में वसूल लेगा! Hahaha!!!
कहते उसकी नज़र ड्राईवर पर गयी जो rear view miror से उसे ही देख रहा था.. उसने अपनी आवाज़ धीमी की… उस बीच सतीश बोला,
सतीश: “सुन! फिर भी कान-आँख खोल कर काम करना.. और दिन में तीन call ज़रूरी है.. ताकि मुझे भी सब कुछ पता रहे!”
सतीश ने उसकी फिक्र जताते उसे कहा।
नीना (हँसते हुए): “Yes boss!”
हँसते हुए, नीना ने call disconnect किया।
शाम हो चुकी थी। वो कोलकाता की सड़कें देखने लगी। वैसे वो पहली बार यहाँ आई थी.. लेकिन इस शहर के बारे में उसने बहुत कुछ सुना था। उसने तय किया अब जब आने का मौका मिल ही गया है तो पूरा शहर घूम कर जाएगी।
कोलकाता शहर की भीड़-भाड़ धीरे-धीरे हलकी हो रहीं थीं। सत्यजीत चौधरी की Mercedes, रफ़्तार पकड़ते हुए कोलकाता को पीछे छोड़ के highway पर हवा से बातें थी।
नीना driver से पूछती है कि और कितना time लगेगा में। Driver अदब से की “चौधरी बागान बाड़ी” कोलकाता से 45 मिनट की दूरी पर है, किनारे। बस, अगले 15-20 मिनट में पहुँच जाएंगे। “बागान बड़ी” का मतलब है garden वाला villa या हवेली। नीना आराम से बैठे हुए बाहर के नज़ारे देखने लगी। केले और नारियल के पेड़, तालाब, खेत-खलिहान, कैसे सब शाम का रंग ओढ़ रहे थे।
कुछ ही देर में कार हवेली के बड़े आलीशान और सुंदर से gate में enter हुई। एक आदमी ने दौड़ कर उसकी तरफ़ का दरवाजा खोला और उस झुक कर greet किया और बोला
“शुभो शोंधा”
नीना ने भी झुक कर smile पास की लेकिन उसे समझ ही नहीं आया कि जवाबी कार्यवाही में कहना क्या है (laugh) । वो मुसकुराते हुए खड़ी हो गयी। शम्भू, चौधरी बागान बाड़ी का caretaker.
अंधेरा हो चुका था लेकिन चौधरी बागान बाड़ी की जगमगाहट देखते ही बनती थी। नीना की आंखे उस सजावट को निहार रही थी। उसका सामान first floor पर बने गेस्ट रूम में रखा जा रहा था. शम्भू नीना के आगे-आगे चल रहा होता है और अब वो बाहर के गेट से अंदर की तरफ आ जाते हैं। अंदर खड़े होके, नीना ने चौधरी बाड़ी को पूरी निगाह से देखा। काफी बड़ा और फैला हुआ था। ऊपर एक लगातार चलने वाला बरामदा दिख रहा था जिसके साथ कई सारे bedrooms बने थे। नीना जब नज़र दौड़ा रही तो उसकी नज़र किसी पर पड़ी जो शायद नीना को देख रही थी और उससे नज़र बचने के लिए तुरंत अपने कमरे में अंदर चली गई। नीना को तो अजीब लगा पर उसने ज़्यादा नहीं सोचा.
वहीं पर, शाम की चाय की व्यवस्था की गई थी। शम्भी ने नीना को बिठाया और उसको चाय के साथ बंगाली व्यंजन serve करने लगा. उसी वक़्त एक और staff, एक फ़ोन लेकर दौड़ते हुए आया और नीना सा कहा की बड़े बाबू का call है। अब ये बड़े बाबू कौन हैं? अब चौधरी बड़ी में बड़े बाबू कौन हो होंगे। उसने फ़ोन लिए और और कहा। …
सत्यजीत: “हैलो ..”
दूसरी ओर से सत्यजीत की जानी पहचानी आवाज़ आई
सत्यजीत: “Welcome to चौधरी बागान बड़ी! आने में कोई तक़लीफ़ हुई? मुझे उम्मीद है मेरे staff आपका पूरा ख्याल रख रहे हैं?
नीना: Of course Mr Chaudhuri! You are very kind.
इससे ज्यादा नीना बोल ही नहीं पायी।
नीना (अपने-आप से): ‘क्यूँ इसके सामने फुस्स हो जाती हूँ कुछ बोल नहीं पाती?’
सत्यजीत आगे बोले,
“I am sorry, मेरी business meetings मुझे आज रात कोलकाता में ही रुकवाएंगे। पर आप बिलकुल चिंता मत कीजिएगा। कल सुबह नाश्ते के पहले-पहले मैं वहाँ पहुँच जाऊंगा। आज रात आप आराम कीजिये, कल मैं personally आपको बागान बाड़ी का tour दूँगा।
और हाँ! किसी भी चीज़ की जरूरत हो तो शम्भू से कह दीजिएगा। वो मेरा trusted assistant है। उसे इस घर का सब कुछ पता है। और हाँ खाने में जो आपका मन हो वो बनवा लीजिएगा।
Good night ..”
उसी रोबदार आवाज़ में कह कर उसने कॉल भी कट कर दिया और नीना अभी तक फोन पकड़े खड़ी थी ।
नीना मन-ही-मन खुद को कहने लगी, कि कितनी झल्ली है यार तू.. हैलो और हांजी के आगे तेरी गाड़ी बड़ती ही नहीं, वो भी क्या सोच रहे होंगे..’
Transition
Narrator :
“मैडम, खाना तैयार है”
नीना जब dining room में पहुंची तो सामने टेबल पर बंगाली खाना सजा हुआ था - अरहर दाल, आलू-भाजा, धोकार डालना, झींगे पोस्तो, और कौशा मांगशो, जो हर एक कोलकाता blogger Instagram पे डालते रहते हैं। शंभु उसकी प्लेट में सर्व करते सभी चीज़ों के नाम ले कर उसे बता रहे थे। और वो बढ़े चाव से उन्हें देखे जा रही थी।
खाना खा कर वो अपने कमरे में सोने चली गई। दिन भर की थकान और मलमल का बिस्तर आखिर नीना को गहरी नींद आ ही गयी।
शहर की रात और शहर के बाहर की रात में काफी फ़र्क़ होता है।अंधेरा पसरा हुआ था।
रात के तकरीबन तीन बजे होंगे.. घड़ी अपना डंका बजा कर खामोश हो गयी। नीना की नींद खुली उसका गला सुख रहा था। उसने उनींदी आंखो से सामने देखा सामने एक औरत अंधेरे कमरे के किनारे खड़ी है, उसकी नज़रें नीना पर जमी हुई थी। उसके चेहरा चमक रहा है, लेकिन उसकी आँखें उदास थी।
“क.. कौ…. ?”
गले से आवाज़ नहीं निकल पा रही थी। उसका गला खिंचने लगा… ऐसा लग रहा था मानो किसी ने उसके गले पर हाथ रख दिये हो और आवाज़ को दबा दिया गया हो। कमरे का AC ठीक से काम कर रहा था पर वो पसीने में लथपथ थी।
किसी तरह से उसने अपने कमरे का light on किया तो देखा कि कोई नहीं था। नीना डरी हुई थी पर फिर उसने अपने आप को सँभालते हुए सोचा की ये सब उसके दिमाग का वहम है। पानी पीकर, वो सो गयी. इस बार कमरे का night lamp on करके।
नीना ने जो देखा, वो सपना था या सच? अक्सर हवेलियों के राज़ हवेलियों में ही दफ़न हो जाया करते है, और इस सपने की तरह उनके भी कोई नामोनिशां नहीं बचते है ।
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