सुबह हो चुकी थी। खिड़की के सुंदर महीन पर्दों से छनकर रोशनी नीना के चेहरे को छू रही थी। उसके बिखरे हुए बाल उसके गालों को छू रहे थे। उसने अंगड़ाई लेते हुए अपनी भूरी आंखें हल्के से खोली.. और जम्हाई लेते हुए दोबारा बंद कर ली। उसके मुस्कुराते चेहरे पर शांति और सुकून बिखरा हुआ था। जिसे देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि चौधरी बागान बाड़ी में गुज़री ये पहली रात काफ़ी अच्छी रही। इस वक्त भी उसके उठने का कोई इरादा नहीं था, उसने सोचा क्यों ना थोड़ी देर और सो ही लिया जाए। लेकिन तभी दरवाजे पर knock हुआ।
नीना (ऊँघते हुए): इस वक़्त कौन है .. (loud) yes please come in…
नीना के कमरे के बाहर, service staff की एक लड़की ने उसे “सुप्रभात” wish करते हुए कहा की उसने सुबह की चाय, उसके कमरे के बाहर के बरामदे में लगाई है। और यह भी बताया कि चौधरी साहब उनसे, नाश्ते के table पर मिलेंगे, ठीक 9 बजे।
Thank you कहते हुए, नीना बरामदे में पहुँची जहाँ उसकी चाय, सुन्दर से चीनी मिट्टी के tea-pot में रखी हुई थी, जिसमें चेरी के फूल पत्ते बने हुए थे और किनारे पर सोने का पानी चढ़ा हुआ था। साथ में silver की चाय-छन्नी थी जिससे नीना ने अपने लिए चाय निकला। ख़ुश्बू से तो लगा की darjeeling चाय है। पहली ही चुस्की से उसका अनुमान सटीक जान पड़ा। नीना के artistic mood को यह मामला बड़ा पसंद आया। चाय लेकर, नीना अपने कमरे में बनी खिड़की के पास लगे ottoman पर बैठ गई। वहाँ से बाहर का दृश्य बेहद खूबसूरत था।
सामने सुंदर सा तालाब और उसके किनारे लगे केले और नारियल के पेड़ वहाँ की सुंदरता में चार चाँद लगा रहे थे। तालाब में तैरते सफ़ेद बतख देख कर तो उसके चेहरे पर चौड़ी सी मुस्कुराहट तैर गई।
और साथ में गर्म चाय की चुस्कियाँ - दिन बन गया उसका।
Transition
एक भारी-भरकम और गहरी सुर वाले घंटी ने 9 बजने का इशारा किया जो पूरे चौधरी बागान बाड़ी में गूँज उठा। नीना तैयार होकर अपने कमरे से निकली, और नीचे पहुँची breakfast के लिए। Breakfast table पर, सत्यजीत already बैठा हुआ था। Smart casuals में काफ़ी handsome लग रहा था। नीना को देख, वह उठ खड़ा हुआ….
सत्यजीत: "Good morning .. उम्मीद है आपको अच्छी नींद आयी .."
नीना: "Good morning! जी बिलकुल। आपका चौधरी बागान बाड़ी सच में बहुत सुन्दर है।” मुस्कुराते हुए वो उसके सामने लगी कुर्सी पर बैठ गई।
सत्यजीत: “मैंने आपसे कहा था आपके उठने से पहले ही मैं हवेली में आ जाऊंगा और देखिये मैंने अपना वादा पूरा किया। अब आपकी बारी है।
एक businessman, हमेशा businessman ही रहता है। सीधे business की बात पे आ गए। सीधी बात नो बकवास यही सत्यजीत का style था।
नीना: जी ज़रूर...
उसने देखा आज फिर टेबल पर तरह तरह के बंगाली पकवान सजे हुए थे। शंभू उन्हे सर्व करने में लगा हुआ था। नीना के तो मुँह में पानी आ गया। शम्भु ने उसके plate पर चार फूले हुए, गरमा-गर्म लूची रख दिया, और साथ में आलू की बिना हल्दी-वाली सब्ज़ी।उसने सत्यजीत के साथ नाश्ता शुरू किया।
सत्यजीत : यहाँ तो आप कल भी आ चुकी हो…. ये हमारा dining area है। इस घर की सबसे सुकून भरी जगह। क्योंकि खाना मतलब सुकून। right?
मुस्कुराते हुए नीना ने कहा : “जी ..” और लूची का पहला कौर तोड़कर सब्ज़ी में डुबोया।
नीना का धीमा सा जवाब आया। नीना सत्यजीत के सामने कुछ भी कह नहीं पाती थी। इसी बीच शंभु ने सन्देश मिठाई सत्यजीत और नीना को परोसा।
सत्यजीत: यह हमारी पुश्तैनी हवेली है। It’s almost 270 years old! हो सकता है की आपको यह घर, घर कम और museum ज़्यादा लगे। Hahaha!
नीना: No no! I love it!
सत्यजीत: यह जो ऊपर antique झूमर दिख रहा है? मेरे परदादा ने इसे ख़ास मेरी परदादी की demand पर बनवाया था। इसके crystals सीधा Sweden से मंगवाया था उन्होंने।
नीना: wow lovely!
नाश्ता ख़त्म होते ही, सत्यजीत नीना को अपनी चौधरी बागान बाड़ी का tour देने लगे। सत्यजीत की आलीशान हवेली अपनी वास्तुकला और सुंदरता का ऐसा तालमेल था कि वो कहीं और झट से देखने को नहीं मिलता।लेकिन नीना को वहाँ की हवा में थोड़ी भारी पन लगने लगा। मानो हवा इतिहास का कोई बोझ अपने साथ लिए घूम रही हो। नीना की नज़र सामने लगे शेर के चेहरे पर गयी जो अक्सर पुराने जमाने में अमीर लोग शिकार करके अपनी हवेलियों की शोभा बढ़ाते थे.. लेकिन नीना तो उसे देख कर सहम गयी। उसे लगा मानो वो अभी उछल कर उसे खा जाएगा।
नीना : यह… ?
सत्यजीत: दादाजी! शिकार का बड़ा शौक़ था। गाँववालों ने जब कहा की एक आदम-खोर बाघ उनको परेशान कर रहा था, तो बस निकल पड़े, अपनी बन्दूक हाथ में लिए। दादाजी थे बड़े तेज़ निशानची। यह बात इस बाघ को भी समझ आयी, पर अपनी जान गंवाकर।हाहाहाहा ….
आस पास नज़र घुमाकर देखो तो ब्रिटिश, मुगल और बंगाली वास्तुकला का मिश्रण इतनी खूबसूरती से बुना गया कि मुँह से सिर्फ़ ‘आहा!!’ ही निकल सकता था.. फ़र्श पर टाइल्स ऐसे लगी मानो बिसात बिछी हो और अभी शतरंज का खेल शुरू होने वाला हो। जब वो दरवाज़ो को देखती तो उसे सुंदर चित्रकारी, नक्काशी और मूर्तियाँ दिखाई दी। सत्यजीत उसे एक-एक चीज़ बारीकी से दिखा रहे थे। सीढ़ियाँ चढ़कर दोनों, हवेली के उत्तर दिशा वाले wing में पहुंचे।
सत्यजीत : ये देखिये, ये जो vase आप देख रही हो ये specially Italy से लाया गया था। काफ़ी साल पुराना है। और उसके बाजू में वो छोटा सा टेड़ा-मेड़ा pot दिख रहा है?
नीना की नज़र एक अतरंगी से, छोटे से, टेढ़े-मेढ़े मिट्टी के pot पर पड़ी।
नीना :“हाँ। .. ”
सत्यजीत : ये वसुंधरा ने बनाया था अपनी pottery classes के दौरान।हाहाहाहा। बाद में तो वो perfect हो गयी थी लेकिन ये पहला pot था जो उन्होंने बनाया था और जब मैंने इसे इस कमरे में लगवाया तो वो बहुत ग़ुस्सा हो गयी थी। पूरे एक दिन और 4 घंटे मुझसे बात नहीं की..”
नीना: क्यों?
सत्यजीत: वसु नहीं चाहती थी कि मैं यह imperfect pot display करू। Perfect pot तो सब रखते हैं। पर यह special था। यह वसुंधरा के हाथों से बना पहला pot था। I think it's perfect!
इस बात पे सत्यजीत का गला भर आया।
नीना की नज़र बराबर उस पर थी। उसके मन में ख्याल आया …
“ये अपनी बीवी से कितना प्यार करता है.. प्यार करने वाले अक्सर अलग क्यों हो जाते है?” नीना की मासूमियत उसकी सोच में साफ़-साफ़ झलक रही थी।
सत्यजीत : “यहाँ आईये ...”
कहते वो उसे कमरे के बाहर बने बरामदे में ले गए और वहाँ corridor से उसे बाग दिखाने लगे।
सत्यजीत : देखो इस बाग के वो medium height के पौधे है ना?”
सवाल करते उन्होंने उंगली से दिखाया और आगे बोले …
सत्यजीत : “उसे वसुंधरा ने तैयार करवाया था। उस के पीछे अपनी कहानी है। किसी दिन फ़ुर्सत में..”
नीना : क्या हुआ था उन्हें?
ये पहला सवाल था जो नीना ने बिना हिचके पहली बार किया। वो भी सत्यजीत की बात काटते हुए। जब से वो सत्यजीत से मिली थी, मन में उनकी पत्नी के ले कर कई सवाल थे। लेकिन पूछने की हिम्मत उसे अभी तक नहीं हुई।
सत्यजीत (sad): हादसे कभी किसी की ज़िंदगी में कह कर तो नहीं आते.... वो तो बस हो जाते है..”
वो आगे बताने ही वाले थे कि शंभु ने आकर उन्हें बताया कि उन दोनों के लिए चाय तैयार है।
सत्यजीत : “अभी आप कुछ वक़्त यहीं है, सब कुछ इत्मीनान से बताते है। पहले आपको वो कमरा दिखाता हूँ जहाँ वसुंधरा की तस्वीरें लगी हुई है। चाय पीकर रंगो से आपका परिचय करवाता हूँ। मेरी मानें तो आप वसुंधरा का portrait यहीं से बनाए। शायद उससे उसके portrait में और निखार आ जाए ”
नीना यह प्रस्ताव सुनकर थोड़ी uncomfortable हुई, पर इसी बीच सत्यजीत ने एक और कमरे का दरवाज़ा खोला। इन सबके बीच नीना ने महसूस किया जैसे कोई लगातार उसके पीछे चला आ रहा हो। वो कई बार किसी की मौजूदगी के एहसास से चौंकी भी.. लेकिन उसके आस-पास किसी को ना पाकर वो किसी से कुछ कह भी नहीं पायी।
उसे अपने पीछे तेज़ टकराती हुई हवा का अनुभव हुआ। वो दोबारा पलटी लेकिन पीछे शून्य से सन्नाटे के सिवाय कोई ना था।
उसने कमरे में अपने सामने लगी वसुंधरा की तस्वीरें देखी। उसे तो यकीन ही नहीं हुआ कि वो वसुंधरा को पहली बार देख रही है … क्यूँकि कल रात जिसे अपने सपने में नीना ने देखा था, वो तो यहीं थीं। नीना का दिमाग चकराने लगा।
सत्यजीत ने उसे खोया-खोया सा पाया...
सत्यजीत : “आप ठीक तो हैं?”
अब ये बात तो वो सत्यजीत को भी नहीं बता सकती थी वरना काम शुरू होने से पहले ही वो उसे पागल करार दे दिया जाएगा। अजीब उलझन है। उसने ख़ामोश रहने में ही अपनी भलाई समझी।और वैसे भी सत्यजीत के सामने नीना की आवाज़ कहाँ निकलती थी।
सत्यजीत : अच्छा आपको colour pigment दिखाता हूँ.. और हाँ library और मेरा art collection तो आपने देखी ही नहीं।”
यह कहकर, वो नीना को अपने library में ले जाने लगे कि चाय ठंडे होने का डर उसके दिमाग में आया। वो बोला ...
सत्यजीत:“अरे, चाय ठंडी हो जाएगी… चलिए, पहले चाय पीते हैं, फिर मैं आपको मेरा collection दिखता हूँ ..’
नीना: चलिए
Transition
चाय पीते-पीते सत्यजीत को कुछ काम आ गया तो वो चले गए और नीना अपने room में वापस आ गई।वो सोच रही थी उस बात के बारे में जो सत्यजीत ने कही थी। यही कि वो चाहता है कि वसुंधरा का portrait यहीं, चौधरी बागान बाड़ी में रहकर बनाए। और इस सोच से बेचैन होने लगी हमारी artist साहिबा।वैसे तो कोई दिक़्क़त नहीं थी, पर बीच-बीच में नीना को एक अजीब-सी energy अपने आस पास feel हो रही है।
SFX: knock on door
नीना: “जी, आइये”
चौधरी बाड़ी का staff एक wooden box रखते हुए कहा कि यह मालिक ने उनके लिए भेजा है।
नीना समझ गई ये वही colour pigment होंगे । Wooden box की सुंदरता देखकर काफ़ी impressed हुई। बक्सा खोलते ही उसमें रखी शीशे की बोतल में वो pigment था जिससे सत्यजीत अपनी बीवी की portrait बनवाना चाहता था। नीना ने बोतल निकल कर नज़दीकी से देखा - वो pigment काफ़ी shine कर रहा था। और वो normal painting colors से ज़्यादा गाड़ा और गहरा नज़र आ रहा था। वसुंधरा के त्वचा के रंग के लिए नीना को यही इस्तेमाल करने की हिदायत दी गयी थी। शर्त भी यही था। नीना को यह pigment काफ़ी लुभावना लग रहा था। आखिर ऐसा क्या है इस pigment में जिससे painting करवाना था? नीना ने तय किया कि इस बारे में वो सत्यजीत से बात करेगी।
Transition
सत्यजीत ने चौधरी अपनी study में था। अपने antique oak wood table पर बैठे, वह laptop में कुछ type कर रहा था..
नीना पूछताछ करते हुए उनके study में जा पहुँची। इजाज़त मांग, वो कमरे में दाखिल हुई और पूरी हिम्मत से पूछा की सत्यजीत के भेजे हुए pigment में क्या ख़ास है? क्योंकि एक अलग खिंचाव महसूस कर रही थी वो ..
सत्यजीत: वो एक तरह का प्राचीन pigment है जो special तरीके से बनाया जाता है। चौधरी खानदान के paintings के लिए ख़ास तरीके से बना है।
Now, if you’ll excuse me, मुझे कुछ urgent matters निपटने हैं। मैं आपसे थोड़ी देर बाद मिलता हूँ..”
सत्यजीत ने उसे जवाब तो दिया लेकिन उससे नीना का कौतूहल clear नहीं हुआ। लेकिन वो ये भूल गया था कि ज़िंदगी में अस्पष्ट चीज़े ही अक्सर खोज को जन्म देती है। और नीना… उसे तो हर चीज़ का जवाब ढूँढना अच्छा लगता है।
सत्यजीत के study के साथ लगा हुआ, नीना को एक आधखुला दरवाज़ा दिखा। वो एक ख़ुफ़िया कमरा जैसा लगा। दरवाज़े के पीछे क्या है, अब यह सवाल नीना के मन को चुभो रहा था! वो उस कमरे की तरफ आकर्षित हुई। मानो कोई डोर उसे खींच रही हो।
सत्यजीत ने उसे पूरा चौधरी बागान बाड़ी दिखाया, लेकिन ये कमरा क्यूँ नहीं दिखाया?
आखिर इस कमरे के प्रति नीना इतनी आकर्षित क्यों हो रही थी?
क्या नीना उस कमरे तक जाने का साहस करेगी??
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