आसमान में निकला सूरज सरकते सरकते आगे बढ़ रहा था... बेफिक्र.. बेपरवाह.. मानो उसे सब पता हो क्या करना है??? कहाँ जाना है.. क्या सही है और क्या ग़लत... लेकिन हम इंसान आने वाले वक़्त के लिए कितने डरे होते हैं..कितनी सारी उलझनें जिसे सुलझाने की कोशिश में पूरी ज़िंदगी रेत की तरह फिसल जाती है... लाख जतन कर लो मुठ्ठी में ज़िंदगी को कैद करना मुमकिन नहीं होता… लेकिन हम अक्सर यही चाहते हैं कि हम सब कुछ अपने मन मुताबिक कर ले, चाहे उसके लिए किसी और का दिल दुखाना पड़े या फिर इसी जद्दोजहद में अपनी ज़िंदगी से बहुत पीछे छूट जाएं….. कमाल की बात तो ये है, ख़ुद को धोखा देते हुए भी हमें यही लगता है सब सही है जबकि होता सब गलत है…पर आजकल लोगों के जेहन में सही और ग़लत का फ़र्क ही कहां बचा है… अपने मन मुताबिक हर आदमी ये फ़ैसला लेने के लिए आज़ाद है.. और आज़ादी किसे नहीं चाहिए.. बंधनों से आज़ादी, विचारों से आज़ादी, दिल के रिश्तों से आज़ादी, अपने सपने से आज़ादी… लेकिन आज़ादी की चाहत को जकड़ लेने से कब आप गुलाम बन जाते हैं कहां पता चलता है.. ये तय कर पाना नामुमकिन हो जाता है कि हम आज़ाद हैं कि गुलाम..
यही कोशिश तो रोहन कर रहा था इतने सालों से.... ज़िंदगी को अपने हिसाब से control करने की... बदल दे वो सब कुछ जिसे वो पसंद नहीं करता...अगर सच कहूँ तो इतने सालों में रोहन ये कहां समझ पाया... आखिर वो चाहता क्या है??? सूरज की किरणें आसमान में खो गई थीं.. चांद तारों ने आसमान पर कब्ज़ा जमा लिया था जैसे यहां कभी सूरज आया भी ना हो!! !!
इस शहर में रोहन कब आया था???... ये किसी को नहीं मालूम…
रोहन इसी शहर में रहता है, ये बात भी उसे याद दिलाना पड़ता है.. ये और बात है, उसके घर लौटने के इंतज़ार में बबलू की रातें अक्सर सीढ़ियों पर ही गुज़र जाती थीं…कहने को तो बबलू रोहन का नौकर है, लेकिन इस घर की सारी जिम्मेदारियों को वो बखूबी समझता है… बबलू ये भी समझता है, दुनिया के लिए जब रात होती है,
तब रोहन के लिए दिन निकलता है…रोहन के phone में उसकी मां की 10 missed calls थीं… बबलू कई बार room में आकर देख चुका था.. लेकिन रोहन के उठने की आहट नहीं थी… वक़्त से बेपरवाह… अपने आप में खोया कौन है ये रोहन?? क्या ये वही रोहन है जिसे कभी रात से इतना डर लगता के अपनी मां के बग़ैर दूसरे room में जाने के नाम से वो कांप जाता…रोहन की मां अक्सर कहतीं, ये क्या बात है?? इतने बड़े हो गए हो फिर भी अंधेरे से डरते हो… तभी डरते डरते बबलू ने रोहन को आवाज़ दी..
बबलू: (सहमे हुए आवाज़ में)आसमान में निकला सूरज सरकते सरकते आगे बढ़ रहा था... बेफिक्र.. बेपरवाह.. मानो उसे सब पता हो क्या करना है??? कहाँ जाना है.. क्या सही है और क्या ग़लत... लेकिन हम इंसान आने वाले वक़्त के लिए कितने डरे होते हैं..कितनी सारी उलझनें जिसे सुलझाने की कोशिश में पूरी ज़िंदगी रेत की तरह फिसल जाती है... लाख जतन कर लो मुठ्ठी में ज़िंदगी को कैद करना मुमकिन नहीं होता… लेकिन हम अक्सर यही चाहते हैं कि हम सब कुछ अपने मन मुताबिक कर ले, चाहे उसके लिए किसी और का दिल दुखाना पड़े या फिर इसी जद्दोजहद में अपनी ज़िंदगी से बहुत पीछे छूट जाएं….. कमाल की बात तो ये है, ख़ुद को धोखा देते हुए भी हमें यही लगता है सब सही है जबकि होता सब गलत है…पर आजकल लोगों के जेहन में सही और ग़लत का फ़र्क ही कहां बचा है… अपने मन मुताबिक हर आदमी ये फ़ैसला लेने के लिए आज़ाद है.. और आज़ादी किसे नहीं चाहिए.. बंधनों से आज़ादी, विचारों से आज़ादी, दिल के रिश्तों से आज़ादी, अपने सपने से आज़ादी… लेकिन आज़ादी की चाहत को जकड़ लेने से कब आप गुलाम बन जाते हैं कहां पता चलता है.. ये तय कर पाना नामुमकिन हो जाता है कि हम आज़ाद हैं कि गुलाम..
यही कोशिश तो रोहन कर रहा था इतने सालों से.... ज़िंदगी को अपने हिसाब से control करने की... बदल दे वो सब कुछ जिसे वो पसंद नहीं करता...अगर सच कहूँ तो इतने सालों में रोहन ये कहां समझ पाया... आखिर वो चाहता क्या है??? सूरज की किरणें आसमान में खो गई थीं.. चांद तारों ने आसमान पर कब्ज़ा जमा लिया था जैसे यहां कभी सूरज आया भी ना हो!! !!
इस शहर में रोहन कब आया था???... ये किसी को नहीं मालूम…
रोहन इसी शहर में रहता है, ये बात भी उसे याद दिलाना पड़ता है.. ये और बात है, उसके घर लौटने के इंतज़ार में बबलू की रातें अक्सर सीढ़ियों पर ही गुज़र जाती थीं…कहने को तो बबलू रोहन का नौकर है, लेकिन इस घर की सारी जिम्मेदारियों को वो बखूबी समझता है… बबलू ये भी समझता है, दुनिया के लिए जब रात होती है,
तब रोहन के लिए दिन निकलता है…रोहन के phone में उसकी मां की 10 missed calls थीं… बबलू कई बार room में आकर देख चुका था.. लेकिन रोहन के उठने की आहट नहीं थी… वक़्त से बेपरवाह… अपने आप में खोया कौन है ये रोहन?? क्या ये वही रोहन है जिसे कभी रात से इतना डर लगता के अपनी मां के बग़ैर दूसरे room में जाने के नाम से वो कांप जाता…रोहन की मां अक्सर कहतीं, ये क्या बात है?? इतने बड़े हो गए हो फिर भी अंधेरे से डरते हो… तभी डरते डरते बबलू ने रोहन को आवाज़ दी..
बबलू: (सहमे हुए आवाज़ में)आसमान में निकला सूरज सरकते सरकते आगे बढ़ रहा था... बेफिक्र.. बेपरवाह.. मानो उसे सब पता हो क्या करना है??? कहाँ जाना है.. क्या सही है और क्या ग़लत... लेकिन हम इंसान आने वाले वक़्त के लिए कितने डरे होते हैं..कितनी सारी उलझनें जिसे सुलझाने की कोशिश में पूरी ज़िंदगी रेत की तरह फिसल जाती है... लाख जतन कर लो मुठ्ठी में ज़िंदगी को कैद करना मुमकिन नहीं होता… लेकिन हम अक्सर यही चाहते हैं कि हम सब कुछ अपने मन मुताबिक कर ले, चाहे उसके लिए किसी और का दिल दुखाना पड़े या फिर इसी जद्दोजहद में अपनी ज़िंदगी से बहुत पीछे छूट जाएं….. कमाल की बात तो ये है, ख़ुद को धोखा देते हुए भी हमें यही लगता है सब सही है जबकि होता सब गलत है…पर आजकल लोगों के जेहन में सही और ग़लत का फ़र्क ही कहां बचा है… अपने मन मुताबिक हर आदमी ये फ़ैसला लेने के लिए आज़ाद है.. और आज़ादी किसे नहीं चाहिए.. बंधनों से आज़ादी, विचारों से आज़ादी, दिल के रिश्तों से आज़ादी, अपने सपने से आज़ादी… लेकिन आज़ादी की चाहत को जकड़ लेने से कब आप गुलाम बन जाते हैं कहां पता चलता है.. ये तय कर पाना नामुमकिन हो जाता है कि हम आज़ाद हैं कि गुलाम..
यही कोशिश तो रोहन कर रहा था इतने सालों से.... ज़िंदगी को अपने हिसाब से control करने की... बदल दे वो सब कुछ जिसे वो पसंद नहीं करता...अगर सच कहूँ तो इतने सालों में रोहन ये कहां समझ पाया... आखिर वो चाहता क्या है??? सूरज की किरणें आसमान में खो गई थीं.. चांद तारों ने आसमान पर कब्ज़ा जमा लिया था जैसे यहां कभी सूरज आया भी ना हो!! !!
इस शहर में रोहन कब आया था???... ये किसी को नहीं मालूम…
रोहन इसी शहर में रहता है, ये बात भी उसे याद दिलाना पड़ता है.. ये और बात है, उसके घर लौटने के इंतज़ार में बबलू की रातें अक्सर सीढ़ियों पर ही गुज़र जाती थीं…कहने को तो बबलू रोहन का नौकर है, लेकिन इस घर की सारी जिम्मेदारियों को वो बखूबी समझता है… बबलू ये भी समझता है, दुनिया के लिए जब रात होती है,
तब रोहन के लिए दिन निकलता है…रोहन के phone में उसकी मां की 10 missed calls थीं… बबलू कई बार room में आकर देख चुका था.. लेकिन रोहन के उठने की आहट नहीं थी… वक़्त से बेपरवाह… अपने आप में खोया कौन है ये रोहन?? क्या ये वही रोहन है जिसे कभी रात से इतना डर लगता के अपनी मां के बग़ैर दूसरे room में जाने के नाम से वो कांप जाता…रोहन की मां अक्सर कहतीं, ये क्या बात है?? इतने बड़े हो गए हो फिर भी अंधेरे से डरते हो… तभी डरते डरते बबलू ने रोहन को आवाज़ दी..
बबलू: (सहमे हुए आवाज़ में)
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